मुंबई: समकालीन भारतीय सिनेमा में ‘ सत्या ’ को एक मील का पत्थर फिल्म माना जाता है और इसे प्रदर्शित हुये दो दशक का समय बीत जाने के बाद निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने माना कि फिल्म को संयोग के कारण सफलता मिली. वर्मा ने एक्शन फिल्म बनाने के मकसद से परियोजना पर काम करना शुरू किया था , वह पहले ही ‘ शिवा ’ (फिल्म) बना चुके थे लेकिन यह अंडरवर्ल्ड पर आधारित नहीं थी.


वर्मा ने कहा , ‘‘सत्या  में जो कुछ भी हुआ वह संयोग था. यह एक ऐसी फिल्म थी जो अपने आप विकसित होनी शुरू हुयी. अधिकांश काम मैंने स्वभाविक तरीके से किया और लोकेशन पर तत्काल काम किया गया और फिल्म खुद - ब - खुद बन गयी. ’’


उन्होंने बताया , ‘‘केवल फिल्म में चरित्रों को लेकर मैं आश्वस्त था क्योंकि इनमें से अधिकांश वास्तविक लोगों पर आधारित थे जिनसे मैने अपने शोध के दौरान बातचीत की थी.’’


फिल्म निर्माता ने गैंगस्टर और अंडरवर्ल्ड पर व्यापक शोध किया था और पहली बार लेखन करने जा रहे सौरभ शुक्ला और अनुराग कश्यप को पटकथा लिखने की जिम्मेदारी दी थी.


वर्मा ने संवाद लिखने के लिए जाने माने नाटककार विजय तेंदुलकर से भी संपर्क किया था लेकिन चीजें मूर्त रूप नहीं ले पायीं.


सत्या (जे डी चक्रवर्ती), भीखू म्हात्रे (मनोज वाजपेयी) और कल्लू मामा (शुक्ला) ऐसे किरदार थे जिन्हें फिल्म प्रशंसकों से काफी प्यार मिला और ये अभी भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं. फिल्म में उर्मिला मतोंडकर और शेफाली शाह ने भी अहम भूमिकाएं निभायीं. समय के साथ ‘ सत्या ’ एक कालजयी फिल्म बन चुकी है.